' ए काग्रता ही सभी प्रकार के ज्ञान की की नींव है; इसके सिवा कुछ भी करना सम्भव नहीं है|' (स्वामी विवेकानन्द) ए काग्रता में ही सफलता का सारा रहस्य निहित है - इस बात को समझ लेने वाले सचमुच ही बुद्धिमान है | एकाग्रता को केवल योगियों के लिए ही आवश्यक समझना एक बड़ी भूल है | एकाग्रता प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है, भले ही वह किसी भी कार्य में क्यों न लगा हो | देखने में आता है कि लौहकारो, नाइयो, स्वर्णकरो तथा जुलाहों में सहज रूप से ही एकाग्रता विकसित हो जाती है हथौड़ा चलाते समय लोहार यदि जरा -सा भी चूक जाय, तो सम्भव है की वह अपने ही हाथो को कुचल डाले; नाई का उस्तरा यदि गलती से फिसल जाय, तो त्वचा में घाव हो जाने की आशंका है; यदि बढ़ई की पकड़ रुखानी से ढीली पड़ी, तो हो सकता है कि वह अपने आंगुठे से ही हाथ धो बैठे | इसी प्रकार सुनार का कार्य भी नि:संदेह अत्यंत जटिल है | बुनकर यदि अपने करधे पर दृष्टि स्थिर रखे, तभी वह अच्छी गुणवता वाले कपडे बुन सकता है | परन्तु इसमें से कोई व्याख्यान सुनकर पुस्तकों की सहायता से एकाग्रता का अभ्यास नहीं करता | उनके कार्यो की आवश्यक के अनुसार उत्पन्न
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